ज़िक्र जेहलम का है, बात है दीने की
चॉंद पुखराज का, रात पश्मीने की...
कैसे ओढ़ेगी उधडी हुई चॉंदनी
रात कोशीश में है चॉंद को सीने की...
कोई ऐसा गिरा है नज़र से कि बस
हमने सूरत न देखी फिर आईने की...
दर्द में जावदानी का अहसास था
हमने लाडों से पाली ख़लिश सीने की...
मौत आती है हर रोज़ ही रू-ब-रू
ज़िन्दगीने क़सम दी है कल जीने की...!
- गुलज़ार
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