शनिवार, १४ ऑक्टोबर, २०२३

बोध...!



जिंदा बाप कोई न पुजे,
मरे बाद पुजवाये |
मुठ्ठी भर चावल लेके,
कौवे को बाप बनाय ||

कांकर पाथर जोरि के,
मस्जिद लई चुनाय |
ता उपर मुल्ला बांग दे,
क्या बहरा हुआ खुदाय ||

मुंड मुड़या हरि मिलें,
सब कोई लेई मुड़ाय |
बार-बार के मुड़ते,
भेंड़ा न बैकुण्ठ जाय ||

जीवन में मरना भला,
जो मरि जानै कोय
|
मरना पहिले जो मरै,
अजय अमर सो होय ||

मैं जानूँ मन मरि गया,
मरि के हुआ भूत |
मूये पीछे उठि लगा,
ऐसा मेरा पूत ||

भक्त मरे क्या रोइये,
जो अपने घर जाय |
रोइये साकट बपुरे,
हाटों हाट बिकाय ||

जब लग आश शरीर की,
मिरतक हुआ न जाय |
काया माया मन तजै,
चौड़े रहा बजाय ||

- संत कबीर

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